यूपी की योगी सरकार ने शहरों की वास्तविक पहचान को कायम रखने और उसकी पुरानी संस्कृति और जड़ों से लोगों को जोड़े रखने के उद्देश्य से उनके प्राचीन नाम बहाल करने में लगी है। इसी क्रम में सरकार ने इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर दिया था। इसी के साथ इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन, सरकारी कार्यालयों आदि में भी इलाहाबाद की जगह प्रयागराज नाम चढ़ा दिया गया। इस बीच यूपी के उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने अपनी ऑफिशियल वेबसाइट में यहां के नामी गिरामी शायरों के नाम के साथ जुड़े इलाहाबादी शब्द को प्रयागराजी कर दिया है। इसको लेकर हंगामा मच गया।

मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि तेग इलाहाबादी और राशिद इलाहाबादी के नाम भी बदल दिए गए हैं। उनके नाम भी क्रमश: तेग प्रयागराजी और राशिद प्रयागराजी कर दिए गए है। शायरी की दुनिया में ये बड़े नाम हैं। इनके नामों में परिवर्तन बहुत लोगों को चुभ रहा है और वे इसे गलत बता रहे है। इस मामले में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने अपने को अलग कर लिया और कहा कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं है।

इसमें प्रयागराज का इतिहास लिखा गया है। 462 शब्दों में लिखे गए इतिहास में जहां हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा गया है उसमें अकबर इलाहाबादी को अकबर प्रयागराजी लिखा गया है। इसके अलावा तेज इलाहाबादी को तेग प्रयागराजी और राशिद इलाहाबादी को राशिद प्रयागराजी लिखा गया है।

इस मुद्दे को लेकर प्रसिद्ध कथाकार राजेंद्र कुमार और कवि श्लेष गौतम ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि नाम तो शहरों के बदले गए हैं, किसी के व्यक्तिगत नाम बदलने का अधिकार किसी को नहीं है। अगर कोई अपने नाम के आगे इलाहाबादी लिखना चाहता है तो आपको उसे बदलने का हक नहीं है। यह तो इतिहास को मिटाने जैसा काम है। कहा नाम के साथ छेड़छाड़ करना उनका अपमान भी है।

गौरतलब है कि जब योगी सरकार यूपी में कामकाज संभाली थी, उसके कुछ ही महीने बाद यानी 16 अक्टूबर 2018 को कैबिनेट ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने पर मुहर लगा दी थी। तब कहा गया था कि लंबे समय से संत और स्‍थानीय लोग इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने की मांग कर रहे थे।