उत्तर प्रदेश का जिला भदोही..जहां कालीन के साथ-साथ बाहुबली नेता विजय मिश्रा भी चर्चित हैं। इस वक्त जेल में हैं लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं और प्रचार उनकी पत्नी और बेटी कर रही हैं। भदोही के बाहर भी विजय मिश्रा का नाम बड़ा है, धाक ऐसी कि सरकार किसी की हो या पार्टी किसी की चुनाव में जीत विजय मिश्रा की तय है।

80-90 के दशक में वाराणसी को काटकर भदोही जिला बनाया गया। यहीं एक गांव है धानापुर जहां विजय मिश्रा का घर है। शुरुआत में विजय मिश्रा पेट्रोल पंप के मालिक थे और ट्रांसपोर्ट का काम भी करते थे। जब भदोही बस रहा था तो मिश्रा भी अपनी दुनिया में रमें थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलापति त्रिपाठी के करीबी थे तो कांग्रेस में एंट्री मारी। 90 के दशक में विजय मिश्रा ब्लॉक प्रमुख बने।

विजय का कांग्रेस से नाता कमलापति त्रिपाठी और राजीव गांधी की मृत्यु के बाद टूट गया। राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने हिलोरे मारी की जिला पंचायत बना जाए लेकिन शिवकरण यादव जैसा कद्दावर नेता पहले से ही मैदान में था। साल 2000 में मुलायम और शिवकरण के बीच दरार पड़ी तो विजय मिश्रा ने संपर्क साधा। विजय के अलावा तीन और सीट उनके जिम्मे सौंपी गई।

इन चुनावों में विजय मिश्रा ने सभी सीटों पर परचम लहरा दिया। भदोही की ज्ञानपुर सीट से 2002 में विधानसभा टिकट मिला तो विजय ने जीत दर्ज की। साथ ही आसपास की सीटों पर भी सपा के प्रत्याशी जितवा दिए। हालांकि, साल 2005 आते-आते विजय मिश्रा की अपराध फाइल भी मोटी हो रही थी, जिनमें उनके खिलाफ 20 केस दर्ज हो चुके थे। इसी साल उनकी पत्नी रामलली भी ज़िला पंचायत अध्यक्ष हो गईं।

साल 2007 में बसपा की सरकार बनी लेकिन विजय मिश्रा फिर चुनाव जीते। साल 2009 में उपचुनाव के दौरान वह सुर्ख़ियों में तब आये जब पुलिस विजय मिश्रा को गिरफ्तार करने पहुंची थी लेकिन चुनावी जनसभा कर रहे मुलायम सिंह यादव उन्हें अपने हेलीकॉप्टर में बैठाकर उड़ गए थे। फिर साल 2010 में उस पर बसपा की सरकार में मंत्री रहे नंद गोपाल नंदी पर बम से हमला करने का आरोप लगा।

विजय मिश्रा सात महीने गायब रहे और गेरुआ वस्त्र पहनकर देशभर में घूमते रहे। पुलिस ने ढाई लाख का इनाम रखा फिर 2011 में दिल्ली से गिरफ्तार हुए। उस वक्त विजय मिश्रा पर 60 से ज्यादा मुकदमें दर्ज रहे। 2012 के चुनावों में जेल के अंदर से चुनाव लड़ गए और बड़े मार्जिन से जीत दर्ज की। हालांकि, 2017 में अखिलेश यादव ने उन्हें टिकट नहीं दिया। ख़बरें आईं कि बाहुबलियों को अखिलेश किनारे लगा रहे हैं।

मीडिया से बातचीत में कहा कि मैं बाहुबली नहीं जनबली हूं। जब जीत रहा था तब मेरे बारे में ऐसा क्यों नहीं सोचा गया? हालांकि, 2017 में निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा और जीता। 2019 आते-आते वह भाजपा के खिलाफ हो गए। फिर एक केस दर्ज होने पर विजय के घर पर भी बुलडोजर चले और संपत्तियां कुर्क की गई। विजय एक बार फिर फरार हुए और 2020 में एमपी से गिरफ्तारी हुई।

इस बार फिर से विजय मिश्रा चुनाव मैदान में हैं और खुद आगरा जेल में बंद हैं। अब पत्नी और दोनों बेटियां उनके लिए प्रचार कर रही हैं। इस बार वह भदोही की ही क्षेत्रीय पार्टी प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।